काठमांडू/जनकपुर — नेपाल एक विविधताओं वाला देश है जहाँ विभिन्न जातीय, सांस्कृतिक और भाषाई समुदाय सदियों से एक साथ रहते आए हैं। लेकिन इन विविधताओं के बीच, एक गहरी असमानता और भेदभाव की परत भी मौजूद है, खासकर मधेसी समुदाय के साथ। तराई क्षेत्र में रहने वाले मधेसी लोगों को दशकों से पहाड़ी राजनीतिक तंत्र और समाज की ओर से अपमान, भेदभाव और उपेक्षा का सामना करना पड़ा है।
राजनीतिक उपेक्षा और प्रतिनिधित्व का संकट: मधेसी समुदाय नेपाल की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा है, लेकिन राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात हो तो यह समुदाय हमेशा से हाशिए पर रहा है। पहाड़ी नेताओं द्वारा बनाई गई राजनीतिक संरचनाएं मधेसियों को जानबूझकर सत्ता से दूर रखती आई हैं। संविधान निर्माण से लेकर संसद की सीटों के निर्धारण तक, हर कदम पर मधेसी हितों की अनदेखी की गई है। 2007 में जब मधेस आंदोलन हुआ, तब मधेसी युवाओं ने सड़कों पर उतरकर अपने अधिकारों की मांग की। लेकिन इसके जवाब में सरकार ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाईं, जिसमें दर्जनों मधेसी युवाओं की जान चली गई। आज भी उन हत्याओं के दोषियों को सजा नहीं मिली है।
नागरिकता और पहचान का संकट: नेपाल में नागरिकता का मुद्दा भी मधेसियों के लिए एक बड़ा संकट बना हुआ है। मधेसी युवाओं को नागरिकता प्रमाणपत्र देने में जानबूझकर देरी की जाती है। खासकर जब कोई व्यक्ति भारतीय मूल से जुड़ा हो, तो उसे ‘विदेशी’ कहकर संदिग्ध बनाया जाता है। यह रवैया मधेसी समुदाय की नेपालियत पर सवाल खड़ा करता है, जो अपने आप में एक बड़ा अपमान है।
सामाजिक भेदभाव और नस्लीय टिप्पणियाँ: मधेसी समुदाय को अक्सर ‘भारतीय एजेंट’, ‘धोती’, ‘माडिसे’ जैसे अपमानजनक शब्दों से बुलाया जाता है। स्कूलों, कॉलेजों, दफ्तरों और यहां तक कि मीडिया में भी मधेसियों को दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जाता है। उनका रंग, पहनावा, बोलचाल और रीति-रिवाज पहाड़ी समाज के कथित ‘श्रेष्ठ’ नजरिए के सामने बार-बार मजाक का विषय बनते हैं।
रोजगार और संसाधनों में भेदभाव: सरकारी नौकरियों में मधेसियों की भागीदारी बेहद कम है। लोक सेवा आयोग (PSC) में लंबे समय तक ऐसे प्रश्न पूछे गए जो केवल पहाड़ी पृष्ठभूमि के लोगों के लिए अनुकूल होते थे। मधेस के जिलों में शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी विकास के कामों में भी जानबूझकर देरी की जाती रही है।
न्यायपालिका और सुरक्षा तंत्र में पक्षपात: नेपाल की पुलिस और सेना में मधेसियों की भागीदारी बेहद सीमित है। जब भी कोई आंदोलन होता है, तो मधेसियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है, जबकि अन्य जातियों के मामलों में वही पुलिस संयम बरतती है। न्यायपालिका भी कई बार अपने फैसलों में मधेसियों की पक्ष में नहीं दिखती, जिससे समुदाय में असंतोष बढ़ता है।
समाधान की राह: अगर नेपाल को एक सच्चे संघीय, समावेशी और न्यायपूर्ण राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ना है, तो उसे मधेसी समुदाय के साथ हो रहे इस अपमान और भेदभाव को समाप्त करना होगा। केवल संविधान में शब्द जोड़ देने से कुछ नहीं होगा, जब तक धरातल पर समानता न उतारी जाए।
मधेसियों को पूरा सम्मान, प्रतिनिधित्व और अधिकार देना ही एक सशक्त नेपाल की नींव रखेगा।
यह लेख किसी भी जाति या समुदाय के खिलाफ नहीं, बल्कि न्याय और समानता की वकालत करता है।*
यदि आप इससे जुड़ी अपनी कहानी साझा करना चाहते हैं, तो हमें लिखें।